चदरिया झीनी रे झीनी,
राम नाम रस भीनी
चदरिया झीनी रे झीनी।।
अष्ट-कमल दल चरखा चाले ,
पांच तत्व की पूनी ।
नौ-दस मास बुनन को लागे,
जब वो चादर दिनी॥
चदरिया झीनी रे झीनी…
जब वो चादर बन कर आई,
धोबी के घर दिनी।
ज्ञान शिला पर पटक पहाड़ी,
खासा मलमल किनी॥
चदरिया झीनी रे झीनी…
जब वो चादर धूल कर आई,
रंगरेजा घर दिनी।
भाव भक्ति का भाव लगाकर,
लाल-लाल कर दिनी।।
चदरिया झीनी रे झीनी…
चादर ओढ़ शंका मत करियो,
बहुत यतन से दिनी।
मूरख बंधू कहियो नहीं मानियो,
मूरख मैली किनी।।
चदरिया झीनी रे झीनी…
ध्रुव ओढ़ी प्रहलाद ने ओढ़ी,
सुखदेव निर्मल किनी।
दास कबीर जुगत से ओढ़ी,
ज्यों की त्यों घर दिनी।।
के राम नाम रस भीनी,
चदरिया झीनी रे झीनी ।
भजन भंडार