दोहा – संत बड़े परमार्थी,
शीतल ज्यारा अंग।
तपत बुझावे और की,
दे दे भागती रंग।।
मै अरज करू ओ गुरु थाने,
चरणा में राख जो म्हाने।
हेलो प्रकट करू के छाने,
महारी लाज शर्म सब थाने।।
गुरु मात पिता सूत भ्राता,
सब स्वस्थ्य का है नाता।
एक तारण- तिरण गुरु दाता-२,
ज्यारा चार वेद जस गाता।।
मै अरज करू ओ गुरु थाने………
भवसागर भरियो भारो,
म्हाने सूझत नहीं रे किनारो।
गुरु घर में दया विचारो-२,
म्हे डूब रहयो मझधार।।
मै अरज करू ओ गुरु थाने………
कोई संत लियो अवतारों,
जीवो ने पार उतारो।
म्हाने आयो भरोसो भारी,
नहीं छोड़ा शरण थारी।।
मै अरज करू ओ गुरु थाने………
गुरु तन मन धन सब थारो,
चाहे शीश काट लो म्हारो।
जन दरिया राव पुकारो-२,
चरणा रो चाकर थारो।।
मै अरज करू ओ गुरु थाने………
भजन भंडार