दोहा – आया है सो जाएगा,राजा रंक फकीर।
कोई सिहासन चढ़ चला, कोई बंधा जंजीर।।
मरने का कोई गम नहीं, नाशवान संसार।
आया है सो जाएगा,यही जगत का व्यवहार ।।
काया माया पावणी,और कन्या का घर और।
राखियोड़ी रेवे नहीं,पथ जावे छोड़।।
काया कैसे रोई रे तज दिनों प्राण,
तज दिनों प्राण काया कैसे रोई छोड़ चले निर्मोही
मैं जानू काया संग चलेगी किन विद काया तोहै मलमल धोइ रे
तज दिनों प्राण, हो काया कैसे रोई रे………
महल मालिया सब कुछ छोड़िया, गाय भैंस घर घोड़ी रे,
कुटुंब कबीला भया वीराना,
छोड़ तड़पती अपनी सारस वाली जोड़ी रे,
तज दिनों प्राण, हो काया कैसे रोई रे……..
चार जना मिल मतो उठायो चड्यो काठ की घोड़ी,
जाय जंगल में चिता चुनाई,
फुक गई जैसे फागण किसी सी होरी रे,
तज दिनों प्राण, हो काया कैसे रोई रे……..
घर की चिड़िया रोवण लागी बिछड़ गई मारी जोड़ी,
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
इन जोड़ी तिन पल में ही तोड़ी रे,
तज दिनों प्राण, हो काया कैसे रोई रे……..