सियाराम हरे सियाराम हरे,
घनश्याम हरे सियाराम हरे,
श्री राम जब शिवरी के घर पर आए थे,
झूठे बेर भगवान् ने प्रेम से खाए थे,
शिवरी हो गई नाथ दीवानी,
मुझसे कहने लगी ये ही कहानी,
सियाराम हरे घनश्याम हरे………
इंद्र ने जब कोप किया गोवेर्धन ऊपर,
नख पर गिरवर उठा लिया ओ नटवर नागर,
ग्वाले सभी शरण में आए,
आकर हाहाकार मचाए,
सियाराम हरे घनश्याम हरे………
लगा बाण जब लक्ष्मण के घटना ये घटी,
हनुमान के समझ न आई हे केसी बूटी,
उसने पहाड़ उठाया सारा,
मुख से यही नाम सुनाया,
सियाराम हरे घनश्याम हरे………
मीरा ने जब मोहन के मधुर भजन गाए,
राणा ने तो विष के प्याले भिजवाए,
मीरा पी गई, विष का जाम,
उसके लब पे था यही नाम,
सियाराम हरे घनश्याम हरे………
हनुमान ने रावण की लंका जलाई थी,
बच गई कुटिया विभीषण की न्यारी की न्यारी,
उसने किये थे सब वो काम,
बाहर लिखा यही था नाम,
सियाराम हरे घनश्याम हरे………
कोमल की कोमलता में मनवा यु गाए,
स्वामी की सत संगत में आनंद हो जाए,
सब झूमे नाचे गाए,
सब मस्त मगन हो जाए,
सियाराम हरे घनश्याम हरे………