दोहा- गुरु देवन के देव हो,
आप हो बड़े जगदीश।
बेडी भव जल बीच में,
गुरु तारो विश्वाशीष।।
गुरु बिन घोर अँधेरा रे संतो,
गुरु बिन घोर अँधेरा।
बिना दीपक मंदिरियो सुनो,
अब नहीं वस्तु का वेरा हो जी।।
जब तक कन्या रे वे कुंवारी,
नहीं पुरुष का वेरा जी।
आठो पहर आलस में खेले,
खेले खेल घणेरा हो जी।।
गुरु बिन घोर अँधेरा रे संतो…….
मिर्गे की नाभि बसे कस्तूरी,
नहीं मिर्गे का वेरा जी।
रनी वनी में फिरे भटकतो,
सुंधे घास घनेरा हो जी।।
गुरु बिन घोर अँधेरा रे संतो…….
जब तक अग्नि रेवे पत्थर में,
नहीं पत्थर का वेरा हो जी।
चकमक चोटा लागे शब्द री,
अब फेंके आग चोपेरा हो जी।।
गुरु बिन घोर अँधेरा रे संतो…….
रामानंद गुरु मिल्या पूरा,
दिया शब्द तत्साल हो जी।
कहत कबीरा सुणो रे भई संतो,
अब मिट गया भरम अँधेरा हो जी।।
गुरु बिन घोर अँधेरा रे संतो…….
भजन भंडार