दोहा – “मन मरी न ममता मरी और मर-मर गया शरीर,
आशा तृष्णा न मरी तो कह गए दस कबीर।”
थारो दियो रे जमारो खोय गुरासा री सेन बिना,
सेन बिना गुरु री महर बिना रे,
दियो रे जमारा ने खोय गुरासा री सेन बिना…………
1. कंचन काया थारी नही सुधरेगी -2,
गुरु सामीरथ का मिलना ना होय,
गुरासा री सेन बिना…………
2. मन हस्ति ने कुण समझावें -2,
कोई तो महावत मिले नही कोई,
गुरासा री सेन बिना…………
3. त्रिकुटि भवन पर चेतन चलनो-2,
ज्यांरा ताला है बजर किवाड़ (का होय),
गुरासा री सेन बिना…………
4. ऊँकारलाल सतगुरुजी रे शरणे -2,
वो तो सत अमरापुर जाय,
गुरासा री सेन बिना…………